Saturday, December 14, 2019

कुमाऊँनी व्यंजन

उत्तरांचल के कुमाऊँ प्रदेश पहाडियों मैं हर प्रकार के साग-शब्जियों की प्रचुर मात्रा है| यहाँ के लोग इनको व्यंजन के रूप मैं तैयार करने मैं पारंगत है| आलू, मूली, गडेरी (बड़ी अरबी) लौकी, पेठा, कद्दू, तोरई, गाजर इत्यादी एवं दालों मैं मास (उड़द), भट, सोयाबीन, गहत, (कुल्थी), मसूर, रेन्स, लोबिया, सेम, लोबिया इत्यादी अन्य मैं तिल, मडुआ, झुंगर, कौढी, धान, जौ और फल मैं माल्टा, नीम्बू, अठानी, गल्लर, चबूतरा, आम, दादिम, पपीता, तिमिल, बेदु, काफल, आंवला, खुबानी, आडू, नासपाती, अखरोट, पुलम, महल, गढ़मेहल, इत्यादी प्रचुर मात्र मैं प्राप्त होती है| इन प्राकृतिक दिनों से लोग भिन्न-भिन्न प्रकार के व्यंजन तैयार करते हैं| ये बनाने मैं जितने सरल उतने ही खाने मैं स्वादिष्ट एवं पाचक और स्वस्थ सेहत के लिए खाद्य पदार्थ होते हैं| नीचे हम कुमाऊँ के कुछ व्यंजन की चर्चा करेंगे--

गहत के डूबके
गहत (कुल्थी) के डूबके लोहे की कढाई मैं बनाया जाता है| जिससे उसका स्वाद एवं रंग निर्धारित होता है| पहले कुल्थी को सिलबट्टे मैं पिसा जाता है| उसके उपरांत कढाई में पानी गरम करके उसमे मसाले और नमक डाला जाता है, याद रहे इसमे हल्दी नहीं डाली जाती| अब इन्हें रब तक पकाना है, जब तक इसका रंग गहरा कला न हो जाए| साथ ही उसमे हींग डालने से इसके स्वाद मैं चार चाँद लग जाते हैं| फिर तेल मैं लहसुन का छोंक लगाकर उसमे डाला जाता है| इस प्रकार यह व्यंजन तैयार हो जाता है| इसी चावल एवं रोटी दोनों मैं खाने के लिए प्रयोग किया जा सकता है|

भट का राजड
सर्व प्रथम भट को एक दिन पहले भिगोते हैं, जब अच्छी तरह भीग जाए टैब दुसरे दिन उसका कला छिलका निकलने के बाद उसे मोटा पिस्ता हैं| पीसने के बाद चावल को कढाई मैं डालते हैं, साथ मैं इसे भी दाल देते हैं| नमक मसाले के साथ धीमी आंच मैं चावल की तरह पकाते हैं, इसे गीला बनाया जाता है| इसमे हल्दी नहीं डाला जाता है| कुछ देर पकाने के बाद यह तैयार हो जाता है, इसे खाने से शरीर हृष्ट पुष्ट रहता है|

मास (उड़द) के चांस
मास (उड़द) के चांस को बनाने मैं थोड़ा परिश्रम जरुर लगता है, सबसे पहले मास को तोवे मैं भूना जाता है| भूनने के बाद उसे एक पात्र मैं रख दिया जाता है| इसके उपरांत उसे सिलबट्टे पर पिसा जाता है, पीसने के बाद तेल मई प्याज, मसाला, टमाटर पकाया जाता है| यदि लहसुन की पत्तियां तेल मैं भूनकर डाली जाय तो इसका स्वाद अधिक बढ़ जाता है| कुछ देर तक इसे हलके आंच मैं पकाया जाता है, इसके बाद यह तैयार हो जाता है| यह मुख्यतया चावल के लिए प्रयुक्त है|

गहत मास एवं अरबी के पत्तों की पेठा या लौकी के साथ बढियां
बढियां बनाने के लिए पहले पेठा या लौकी को कुराणी या किसी चाकू को यू आकर मैं टेडा किया जाता है, उसके उपरांत उसे रायते की तरह कोरा जाता है| इस कोरे हुवे पेठे को साफ बड़े परत मैं रखा जाता है| इससे एक दिन पहले गहत या मास को भिगोया जाता है, फिर इसे बारीक पिसा जाता है| इसी प्रकार अरबी के पत्तों को ओखली मैं खूब कूटा जाता है, फिर तीनों की एक ही प्रक्रिया होती है| अरबी के कूटे हुए पत्तों, कोरा हुआ पेठा एवं कोरा हुआ लौकी को गहत, मास के साथ खूब मिलाया जाता है| इसके उपरांत इनकी छोटी-छोटी गोलियां बनाई जाती है| इनको किसी साफ लकड़ी के तखत मैं ५ या ६ दिन तक सुखाया जाता है एवं सूखने के बाद इसे किसी थैले या पात्र मैं संभाल कर रखा जाता है| एक पेठा एवं एक किलो मास या गहत के साथ कम से कम १५० बढियां बनाए जा सकती हैं| इसे साल तक के लिए भी प्रयोग किया जा सकता है|

बढ़ियो की व्यंजन बनाने की विधि
इन बढ़ियो को साधारणतः मुंग या नया बढ़ियो की तरह बनाया जाता है| तेल मैं प्याज के साथ इन्हें थोडी भूनते हैं यदि बढ़ियो को बिना भूने भी बनायें तो भी इसके स्वाद मैं कोई कमी नहीं आयते| फिर टमाटर मसाले पकाकर इसे साथ मैं मिलाया जाता है एवं थोडी देर पकाने के बाद यह व्यंजन पूरी तरह तैयार हो जाता है| यदि चावल के लिए बनाना हो तो पानी की मात्र बढ़ा दें, अन्यथा इसे गाढा ही रहने दें, इसका स्वाद सर्दियों के दिनों सुबह चावल के साथ खाने मैं इसका स्वाद बहुत स्वादिष्ट होता है|

पालक या चौलाई का काप
यह व्यंजन अधिकांश चावल के लिए बनाया जाता है, परन्तु चपातियों के लिए भी इसे प्रयोग किया जा सकता है| सर्वप्रथम चौलाई या पालक को किसी पात्र मैं पकाया जाता है| इसके बाद इसे सिल बट्टे मैं पीसा जाता है, बाद मैं इसे एक पात्र मैं रखकर सर्वप्रथम टमाटर, मसाले एवं प्याज को किसी पात्रमें पकाने के बाद इसे डाला जाता है, फिर पानी डालकर इसे कुछ रारिदार बनाया जाता है| जिससे चावल मैं खाया जा सके| इसके बनाने की विधि पंजाबी सरसों का साग की तरह होता है|

आलू या अरबी के गुटके
अरबी या आलू को सर्वप्रथम कूकर मैं उबाला जाता है| फिर इसे किसी पात्र मैं रखकर इसके छिलके को निकाला जाता है| इसके उपरांत आलू या अरबी को छोटे-छोटे टुकडों मैं काटा जाता है, तदुपरांत उसमे नमक मसाले डालकर इसे तैयार किया जाता है| यह व्यंजन मुख्यतः कुमाऊँ मैं ख़ास कार्यों मैं बनाया जाता है|

काले तिल का पिन
काले तिल का पिन खाने मैं बहुत स्वादिष्ट होता है| इसमे सबसे पहले तिल को ओखली मई पीसा जाता है, इसके बाद एक बड़े पात्र रखा जाता है तथा दो कप पानी गरम किया जाता है| पात्र मैं पीसा हुवा तिल मैं थोड़ा सा गरम पानी के साथ आते की तरह गुनथते हैं एवं टैब तक गुनथते हैं जब तक उसमे से तेल न आने लगे जितना गुनथते हैं यह उतना ही स्वादिष्ट होता है, इसके बाद इसे छोटे-छोटे गोले मैं या आपने सुबिधापुर्वक आकार दे सकते हैं| बाद मैं इसे किसी बर्तन मैं रख दें| यह कई महीने तक ख़राब नहीं होता जितना पुराना हो उतना ही स्वादिष्ट होता है|

सिसून का साग
सिसून गाँव के रास्तों मैं होने वाला आम पोंधा है यह पोंधा यदि शरीर मैं लग जाए तो पूरे शरीर मैं दर्द के साथ फुन्सियाँ निकल जाती हैं, जिसे फिर राख लगाकर ठीक किया जाता है| परन्तु जितना खतरनाक उतना ही स्वादिष्ट साग| सबसे पहले सिसून के नई कोपलों को को तोडा जाता है फिर इसे कढाई मैं हरी साग की तरह पकाया जाता है, एवं मसाला और नमक डालकर कुछ देर तक साग की तरह पकाया जाता है| एकदम तैयार| यह कुमाऊँ का एक अलग ही स्वादिष्ट साग है|